ग़ज़ल

फ़रवरी 15, 2023 - 23:23
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ग़ज़ल

कौन कहता है मोहब्बत को जबाँ होती है

 ये हक़ीक़त तो निग़ाहों से बयाँ होती है

वो न आए तो सताती है ख़लिश सी दिल को

वो जो आए तो खलिश और जवाँ होती है

 

रूह को याद करे दिल को जो पुर-नूर करे

हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है

 ज़ब्त सैलाब-ए-मोहब्बत को कहाँ तक रोके

 दिल में जो बात है आँखों से अयाँ होती है

जिंदगी एक सुलगती सी चिता है 'साहिर '

शो'ला बनती है न बुझ के धुआँ होती है

साहिर होशियारपुरी

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