रिटायर होते कर्मचारियों की जगह रोबोट ला रही हैं कंपनियां

जर्मनी में कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए रोबोटों का इस्तेमाल बढ़ रहा है. देश की लगभग आधी से ज्यादा कंपनियों में खाली पदों को भरने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. हर साल खाली पदों की संख्या बढ़ती जा रही है.

अक्टूबर 28, 2023 - 23:22
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रिटायर होते कर्मचारियों की जगह रोबोट ला रही हैं कंपनियां

मशीन के पुर्जे बनाने वाली कंपनी एस एंड डी में ग्राइंडिंग यूनिट के प्रमुख रिटायर हो रहे हैं. कामगारों की भारी कमी से जूझ रहे जर्मनी में उनकी जगह ले सके ऐसे उम्मीदवार बहुत कम हैं. हाथ से होने वाला यह काम गंदा और खतरनाक भी है. ऐसे में कंपनी ने इंसानों की जगह रोबोट को काम पर रखने का फैसला किया है.

छोटे और मध्यम आकार की दूसरी कंपनियां भी ऑटोमेशन की तरफ बढ़ रही है. जर्मनी में युद्ध के बाद "बेबी बूम" जेनरेशन के लोग रिटायर हो रहे हैं और कामगारों की संख्या लगातार घटती जा रही है. आधिकारिक आंकड़े दिखाते हैं कि जर्मनी में करीब 17 लाख नौकरियां खाली पड़ी हैं. यह आंकड़ा इस साल के जून महीने का है. जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डीआईएचके) का कहना है कि जर्मनी की आधी से ज्यादा कंपनियां खाली जगहों को भरने की दिक्कत से जूझ रही हैं. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को इसकी वजह से हर साल करीब 100 अरब यूरो का नुकसान हो रहा है.

एस एंड डी के प्रबंध निदेशक हेनिंग श्लोएडर ने इस प्रवृत्ति का नाम लेकर ऑटोमेशन और डिजिटलाजेशन के लिए कंपनी पर दबाव को समझाया. श्लोएडर का कहना है, "पहले से ही कुशल कामगारों की कमी की जो कठिन स्थिति है, खासतौर से उत्पादन और कारीगरी में, वह और ज्यादा बड़ी होगी."

ग्राइंडिंग यूनिट का नया प्रमुख ढूंढना बेहद कठिन था, "सिर्फ इस काम में उनके विशाल अनुभव की वजह से नहीं बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह कमर तोड़ने वाला काम है जो अब कोई नहीं करना चाहता." मशीन ग्राइंडिंग में बहुत गर्मी होती है और लगातार शोर होता इसके अलावा चिंगारियां निकलती हैं जो खतरनाक हो सकती हैं.

बहुत सी महिलाएं अब नौकरियों के लिए घर से बाहर निकलने लगी हैं और बड़ी संख्या में आप्रवासियों के आने से जर्मनी की आबादी में आ रहे बदलाव से जूझने में थोड़ी मदद मिली है. हालांकि बेबी बूमरों के रिटायर होने के बाद कम जन्मदर के कारण कामगारों का एक बहुत छोटा दल ही काम करने के लिए सामने आ रहा है. संघीय रोजगार एजेंसी को आशंका है कि 2035 तक कामगारों की कमी 70 लाख तक पहुंच जाएगी.

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