किताबें
रोशनी की हरियाली
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दिल पर हाथ रखकर कहो, क्या नई-नई किताबों को पढ़ने की ललक- उन्हें ख़रीदने और पढ़ने का चाव, उन्हें न ख़रीद सकने की तंगदस्ती पर चुभन- अपनी अनुभव-संपदा में कुछ जोड़ने, इसका विस्तार करने, उसे स्वायत्त करने के लिए है? या भीतर ही भीतर जो एक ख़ालीपन पैदा होता जा रहा है, उससे घबराकर उसे भरने के लिए- उस खोखल में बाहर का कुछ ठोस डाल देने के लिए ? •••
मैं जानता हूँ कि शब्द भी ज़्यादा दूर तक साथ नहीं देते- तृन की नौका सागर के पार नहीं, बस एक टापू तक जाकर रुक जाती है. मैंने चाहा है कि महसूस करूँ कि शब्द के बाहर सिर्फ अन्धकार ही नहीं है- सपाट, टापूरहित सागर का अन्धकार. बल्कि अन्धकार में मिला हुआ रोशनी का चूर्ण भी है. रोशनी की हरियाली.
शब्द के बाहर के इस रोशनी-मिले अन्धकार से क्या संवाद संभव नहीं है ? •••
☘️ मलयज
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