चार्ली चैप्लिन
चार्ली चैप्लिन के चाहने वालों की संख्या गिनना नामुमकिन है. वैसी ख्याति कभी किसी को नहीं मिली – न मर्लिन मुनरो को, न अलबर्ट आइन्स्टीन को, न मुहम्मद अली को. एक साथ हंसाने और रुला देने वाले उसके काम की महत्ता आज भी वैसी ही बनी हुई है. वैसा बहादुर फिल्मकार भी कोई दूसरा न हुआ. जब दुनिया हिटलर ने नाम से थर्रा रही थी, चार्ली ने ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ जैसी क्लासिक बनाकर उसका मखौल बनाया था.
मूक फिल्मों के ज़माने में 1923 के साल सोवियत रूस के प्रतिनिधि अखबार ‘प्रावदा’ में चार्ली की तारीफ़ में एक लेख छपा जिसमें उसकी महाप्रतिभा की खूब तारीफ़ करते हुए उसे सर्वकालीन महानतम अभिनेता बताया गया था. अमेरिका की सरकार को चार्ली की जनपक्षधरता से ख़तरा लगता था. चूंकि रूस को वह अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती थी, उसके किसी जासूस ने ‘प्रावदा’ का वह लेख देश भर की सुरक्षा एजेंसियों को भेजा.
चालीस से भी ज्यादा सालों तक अमेरिका की शीर्ष गुप्तचर संस्थाएं इस बात की पुष्टि करने में लगी रहीं कि चार्ली यहूदी है, रूस का कम्यूनिस्ट एजेंट है और उसका असल नाम इज़राइल थोर्नस्टाइन है और वह फ्रांस में पैदा हुआ है.. ब्यूरोक्रेसी ने चार्ली को हॉलीवुड का “पार्लर बोल्शेविक” कह कर उसकी खिल्ली भी उड़ाई. सीनेटर रिचर्ड निक्सन ने, जो बाद में अमेरिका का राष्ट्रपति बना, चार्ली चैप्लिन को “अमेरिकी समाज के लिए सबसे बड़ा ख़तरा” बताया. यह और बात थी कि अमेरिका में उसे चाहने वाले करोड़ों की तादाद में थे.
इस सब से परेशान चार्ली के 1952 में अमेरिका छोड़ इंग्लैण्ड बस जाने का फैसला किया. इंग्लैण्ड इसलिए कि वह उनकी जन्मभूमि थी जहाँ 1889 में लन्दन में उनकी पैदाइश हुई थी. बदनाम अमेरिकी संस्था एफबीआई के इशारों पर चलने वाली ब्रिटिश जासूसी संस्था एम आई फाइव के एजेंटों ने इंग्लैण्ड में घुसते ही उनसे उनके धर्म और उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता को लेकर बेहद अटपटे और बेवकूफाना सवाल पूछने शुरू किये.
चार्ली चैपलिन को अंततः बुढ़ापा काटने के लिए स्विट्ज़रलैंड बसना पड़ा. वहीं 1977 में उनकी मृत्यु भी हुई.
एक भला आदमी समूची दुनिया के लिए मानव इतिहास की उत्कृष्टतम कला रच रहा था जबकि पैसे और घमंड के बल पर चल रही सरकारों ने उसकी जासूसी पर अरबों रुपये फूंके और उसका जीवन नरक बना डाला. महज़ इसलिए कि दुश्मन देश ने उसे महान कह दिया था.
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