कविता
प्रेम बारिश बनकर गिरा सब पर।
पर मेरे भूखे पेट ने ढूंढी नौकरी
और छाता बनकर मुझे
कभी इस बारिश में भीगने न दिया।।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
प्रेम बारिश बनकर गिरा सब पर।
पर मेरे भूखे पेट ने ढूंढी नौकरी
और छाता बनकर मुझे
कभी इस बारिश में भीगने न दिया।।