कविता
माँ तेरी देहरी के बाहर से
कुएं की मुंडेर पर रख आई हूँ
साँझ का दिया बाती
माएँ होती हैं
पहली साक्षी देह की !
मन की !
रश्मि मालवीया
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
माँ तेरी देहरी के बाहर से
कुएं की मुंडेर पर रख आई हूँ
साँझ का दिया बाती
माएँ होती हैं
पहली साक्षी देह की !
मन की !
रश्मि मालवीया