शेर
                                कितनी मुश्क़िल के बाद टूटा है
एक रिश्ता कभी जो था ही नहीं
{ शहबाज़ रिज़वी }
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                                कितनी मुश्क़िल के बाद टूटा है
एक रिश्ता कभी जो था ही नहीं
{ शहबाज़ रिज़वी }