गज़ल
ये कैसे रिश्तों में फंस गया मै, ये कैसे रिश्ते निभा रहा हूँ
जता रहा हूं किसी से चाहत, किसी से नफ़रत छुपा रहा हूँ
कभी कहा था,अकड़ के मुझसे, न जी सकेगा बिछड़ के मुझसे
वही गया था झगड़ के मुझसे, उसी को जी कर दिखा रहा हूँ ...
मुझे हक़ीकत पता नहीं थी, पर इसमे मेरी ख़ता नहीं थी
तेरी ख़ता, क्या पता नहीं थी,तुझे लगा मैं सता रहा हूँ....
मैं ख़ुद को बिल्कुल बदल चुका हूं,तेरी हदों से निकल चुका हूँ
के वक्त रहते सम्हल चुका हूं, यकीन ख़ुद को दिला रहा हूँ
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