ग़ज़ल
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर भी मैं दूर से देखा किया
ज़िन्दगी भर मेरे काम आए उसूल
एक एक करके उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफाओं में भी थी
तुमसे क्या कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्छा किया
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