ग़ज़ल
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सम्भलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं !
मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ ना कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं !
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,
ख्वाब आ आ के मेरी छत पाय टहलते क्यों हैं !
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यों हैं
राहत इन्दौरी
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