उस्ताद बहाउद्दीन डागर

शाम के बारे में अक्सर बहुत कुछ लिखा गया और बोला जाता रहा है...मसलन सुहानी शाम, अहलदा शाम, रंगीन शाम इत्यादि इत्यादि...लेकिन बहुत कम ऐसा हुआ है जब सुबह अहलदा हो...सुबह के बारे में सिर्फ यहीं कहा गया कि जिसने सुबह ए बनारस नही देखा उसने जीवन ही नही पाया...लेकिन बात यहां पुणे के एक सुबह की है...एक ऐसी सुबह जो कम से कम मेरे लिए तारीख में दर्ज कराने के काबिल है...मौका था उस्ताद बहाउद्दीन डागर (bahauddin dagar) साहब को सुनने का, फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में (FTII, pune) ...बहाउद्दीन साहब डगुरबानी स्टाइल में रुद्र वीणा बजाते है...वो नायक हरिदास डागर के २० वी पीढ़ी का प्रनिधित्व करते है जो १६ वी शताब्दी से शुरू हुई थी। ये कुछ ऐसा ही जैसे इतिहास के कुछ सफों को वर्तमान में सहलाना। उस्ताद जी ध्रुपद भी गाते हैं...पर यहां उनसे राग मालकौंस की तोड़ी और राग भूप सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । ये अनुभव जीवन भर मेरे मानस पटल पर अंकित रहेगा. वीडियो काफी बड़ा होने के कारण लगा नही पा रहा ...आप वैसे youtube par bhi sun सकते हैं।
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