शेर
रोज़ इक हादसा इस में भी समा जाता है
जीते-जी कैसा ये महशर हुईं आँखें मेरी
~ राशिद तराज़
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रोज़ इक हादसा इस में भी समा जाता है
जीते-जी कैसा ये महशर हुईं आँखें मेरी
~ राशिद तराज़