संवाद
गुरजिएफ़ निरंतर अपने शिष्यों से कहा करता था कि जिस व्यक्ति ने ध्यान नहीं किया, वह कुत्ते की मौत मरेगा। किसी ने उससे पूछा, कुत्ते की मौत का क्या अर्थ होता है? तो गुरजिएफ़ ने कहा, कुत्ते की मौत का अर्थ यह होता है कि व्यर्थ जिया और व्यर्थ मरा। दुत्कारें खायी, जगह—जगह से भगाया गया, जहाँ गया, वहीं दुत्कारा गया, रास्ते पर पड़ी जूठन से ज़िन्दगी गुज़ारी, कूड़े—करकट पर बैठा और सोया, और ऐसे ही आया और ऐसे ही व्यर्थ चला गया, न ज़िन्दगी में कुछ पाया न मौत में कुछ दर्शन हुआ—कुत्ते की मौत।
लेकिन हमें लगता है कि कभी-कभी कोई कुत्ते की मौत मरता है। बात उल्टी है, कभी-कभी कोई मरता है जिसकी कुत्ते की मौत नहीं होती। अधिक लोग कुत्ते की मौत ही मरते हैं। हज़ार में एकाध मरता है जिसकी मौत को तुम कहोगे कि कुत्ते की मौत नहीं है। जो जिया, जिसने जाना, जिसने जागकर अनुभव किया, जिसने जीवन को पहचाना, जिसने जीवन की किरण पकड़ी और जीवन के स्रोत की तरफ़ आँखें उठायीं, जो ध्यानस्थ हुआ, वही कुत्ते की मौत नहीं मरता।
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