ग़ज़ल ( बेवफाई को भी )
बेवफ़ाई को भी अंदाज़ ए वफ़ा मान लिया
कज अदाई को हसीनों की अदा मान लिया।
मिला कमज़ोर तो शैतान बताया उस को
और ताकत नज़र आयी तो ख़ुदा मान लिया।
दिल धड़कने को तिरे पाँव की आहट समझे
दिल जो टूटा तो उसे अपनी सदा मान लिया।
फिर कोई शख्स बरहना नज़र आया ना हमे
जिस्म को रूह ए बरहना की क़बा मान लिया।
जिसे माना नहीं तो कुछ नहीं माना उसको
और जिसे मान लिया हद से सिवा मान लिया।
अपनी तन्हाई पे इक शेर कहा था हम ने
और लोगों ने उसे हर्फ़ ए दुआ मान लिया।
रोज़ होती गई कुछ और पुरानी दुनिया
और दुनिया ने उसे रोज़ नया मान लिया।
: Ameer Imam
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