कविता
पृ्ष्ठों के ह्रदय में से
उभरते काँपते हैं
वायलिन के स्वर
सहज गुंजाती झनकार
गहरे स्नेह-सी।
~ मुक्तिबोध एक कविता में
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
पृ्ष्ठों के ह्रदय में से
उभरते काँपते हैं
वायलिन के स्वर
सहज गुंजाती झनकार
गहरे स्नेह-सी।
~ मुक्तिबोध एक कविता में