कविता
दिल एक ख्वाब सही।
दिल्ली जिसे होना था
एक पूरा नया शहर
वो हिस्से में मेरे आया
उतरन बनकर किसी की-
इसमें जो रह चुका था पहले
उसकी गंध रही-
चाहे कितनी बार भी धोया
इस शहर को मैंने बारिशों में।
अब कहाँ जाएं इस उमर में
हम अभी- सच मिला नहीं-
तो दिल एक ख्वाब सही।।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?