कविता
                                    इतना खाली कभी कुछ नहीं हो सकता,
जितना खाली होता है भरा हुआ एक मन।
इतना भरा कहीं कभी नहीं रहता,
जितनी भरी होती हैं दो खाली आँखें।
अंतस की सारी शून्यतानिरंतर फैलकर,
निगल जाएगी किसी दिन ये अम्बर।
इतना विस्तृत कहीं कुछ नहीं होता,
पास बैठे दो लोगों के बीच पसरी तन्हाई जितना।
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