कविता
तोश नाम की जगह है
हिमाचल में,
वहां कैफ़े के
एक अलाव के चारों ओर बैठे थे हम।
तब मेरे मित्र ने कहा था चलने को,
और मैंने बोला था
'रुकते हैं आग के पास'।
पास बैठे एक गाँव वाले ने बोला था
'आग भी अजीब है,
जाने ही नहीं देती'।
सच है न
आग छोड़ती ही नहीं,
पेट की आग-
बदले की, आग
वस्ल की,
बदलाव की कोई भी
आगे जाने नहीं देती।
चिता की आग आखिरी
जो नहीं जाने देती।।
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