कविता
"नहीं जाता अब सुबह
मन्नतों से ऊबे,
अहम् से ऐंठे पथरीले देवों के घर
उठता हूँ
आँगन बुहारता हूँ
और कुछ बच्चों के लिए
इक भोर उगाता हूँ।"
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
"नहीं जाता अब सुबह
मन्नतों से ऊबे,
अहम् से ऐंठे पथरीले देवों के घर
उठता हूँ
आँगन बुहारता हूँ
और कुछ बच्चों के लिए
इक भोर उगाता हूँ।"