ग़ज़ल 173

हर किसी की जबान पर मैं हूँ
सातवें आसमान पर मैं हूँ
रह गये सारे आसमां पीछे
इतनी ऊँची उड़ान पर मैं हूँ
कुछ शिकारी है मुन्तजिर मेरे
और अपनी मचान पर मैं हूँ
जिन्दगी ! देख ले उदासी की
आखरी पायदान पर मैं हूँ
आप तो खत्म कर चुके थे मुझे
क्या करूँ मेहरबान पर मैं हूँ
पीछा करता है जिस पर आईना
उम्र की ऐसी ढलान पर में हूँ
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?






