मिर्ज़ा ग़ालिब 6
                                देके खत मुँह देखता है नामाबर
कुछ तो पैग़ाम ए ज़ुबानी और है
SIR GHALIB...
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
                    
                
                    
                
                    
                
                    
                
                    
                
                    
                
                    
                
                                देके खत मुँह देखता है नामाबर
कुछ तो पैग़ाम ए ज़ुबानी और है
SIR GHALIB...