शेर
                                    रत-जगे तक़्सीम करती फिर रही हैं शहर में,
शौक़ जिन आंखों को कल तक रात में सोने का था...!!!
(शहरयार)
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                                    रत-जगे तक़्सीम करती फिर रही हैं शहर में,
शौक़ जिन आंखों को कल तक रात में सोने का था...!!!
(शहरयार)