प्रेम कविता

मुझे याद है
कि कैसे
मेरे हाथों में उग आए
सख़्त पहाड़ को-
तुम्हारी हथेलियों की
लहरों ने
नर्म मैदान बनाया था ।।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?







मुझे याद है
कि कैसे
मेरे हाथों में उग आए
सख़्त पहाड़ को-
तुम्हारी हथेलियों की
लहरों ने
नर्म मैदान बनाया था ।।