नज़्म
दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म
जैसे जंगल में शाम के साये
जाते-जाते सहम के रुक जाएँ
मुडके देखे उदास राहों पर कैसे
बुझते हुए उजालों में दूर तक
धूल ही धूल उडती है
गुलज़ार
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म
जैसे जंगल में शाम के साये
जाते-जाते सहम के रुक जाएँ
मुडके देखे उदास राहों पर कैसे
बुझते हुए उजालों में दूर तक
धूल ही धूल उडती है
गुलज़ार