श्री राम के बाबत

अप्रैल 1, 2023 - 08:41
 0  30
श्री राम के बाबत

'यूरोप में यह माना जाता है कि आधुनिकता का जन्म तब हुआ, जब सामने से चला आ रहा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को बिना कुछ बोले या बिना अभिवादन किए सामने से निकल गया। समाज इतना स्वार्थी हो गया कि अभिवादन की आवश्यकता नहीं रह गई।

 हमारे पारम्परिक देश भारत में ऐसा नहीं है। आज भी बहुत लोग मिलते हैं, तो परस्पर राम-राम करते ही हैं। बहुत सारे गाँवों में यह संस्कृति जीवित है। ट्रेन, बस यात्राओं के दौरान बहुत-से लोग आज भी आपको अनजान लोगों को राम-राम कहते मिल जाएँगे।

 आम अभिवादन के लिए इस नाम का सहज चयन मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र के अनुरूप है। यह नाम कथित आधुनिकता व स्वार्थ की जड़ता को अपने उच्चारण मात्र से तोड़ देता है।... असल में, राम का जो नाम है और उसमें जो सहज निहित विनम्रता है, वह बड़े काम की रही है। दुर्भाग्यवश आज समाज में विनम्रता-भाव में कमी आई है।

वस्तुतः हम राम का नाम इतनी विनम्रता से यूँ ही नहीं लेते, राम अतुलनीय रूप से विनम्र हैं। उनमें कहीं अहंकार नहीं है, कहीं ईर्ष्या-द्वेष नहीं है।... राम यदि मात्र पौराणिक चरित्र थे, तब भी वह हमारे जीवन में उतर गए हैं। शिव थे या नहीं, यह प्रासंगिक नहीं है, पर वह आज हैं, क्योंकि हमने उन्हें गढ़ा है और अब वह हमारे साथ रहते हैं, हर जगह, हर पल। लोक ने राम, कृष्ण को गढ़ा है, ऐसा राममनोहर लोहिया भी मानते थे।

यदि लोक ने भी गढ़ा है, तो एक ही रूप में नहीं गढ़ा है।... राम कभी अकेले नहीं रहते। राम के साथ जो युग्म बने हैं, वे अतुल्य हैं--राम-लक्ष्मण, राम-लखन, सीता-राम, राम-कृष्ण इत्यादि। राम के बिना सीता या सीता के बिना राम की पूर्णता नहीं होती। अतः हमें राम का एक-आयामी रूप बनाने से बचना चाहिए। राम को तमाम रूपों-स्वरूपों में उपलब्ध रहने दीजिए। यह आग्रह हमें करना चाहिए, क्योंकि यह आग्रह कम हुआ है।

...यह सच्चाई है कि अब राम को आक्रामक व्यक्ति के रूप में भी चित्रित किया जा रहा है। उनके परम सेवक हनुमान की भी क्रोधित छवियाँ नज़र आने लगी हैं।

 क्या हमें आज विनम्रता की ज़्यादा ज़रूरत नहीं है?'

आपकी प्रतिक्रिया क्या है?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow