नई किताब
कितनी अजीब बात है! उसी रात मुझे वह शब्द मिल गया, जिसे मैं दिनों से ढूँढ़ रहा था। जिसे आह, Sigh या निसाका लिख रहा था। वह शब्द उसाँस है। भीतर से उठती हुई उसाँस। जानती हो, तुम्हारी हल्की-सी भी याद कहीं से फिरती हुई मन की दीवारों को छूती है। तो उसाँस पास में बज रहे गीत में घुल जाती है। मैं हँसने लगता हूँ। जाने क्यों, हम ख़ुदा होने की कामना करते रहते हैं!
-- बंजारे की चिट्ठियां
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