पुस्तक
डर आता है। जोर से आता है। भरभरा के आता है। कोई इससे बचा हुआ नहीं है। डर आता है और लग जाता है।
कारण? हमें पता नहीं। पता होना चाहिए।
अपने डर को व्यक्त कर दो किसी के सामने बेशर्म होकर। डर चला जाएगा । हैमलेट को ये मामूली सा 'जेस्चर' करने में एक पूरी जिन्दगी लग गई। --
'तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा' उपन्यास से
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