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फ़्रांस के राष्ट्रपति मैकराँ अगले माह के शुरू में चीन जा रहे हैं. उनके साथ यूरोपीय कमीशन की प्रमुख उर्सूला भी होंगी. इस यात्रा का उद्देश्य चीन के राष्ट्रपति शी से यह अनुरोध करना है कि वे रूस के राष्ट्रपति पुतिन पर यूक्रेन में चल रहे सैन्य अभियान को रोकने का दबाव बनायें. मेरा मानना है कि अगर यूक्रेन मामले पर पश्चिम के रवैये में बड़ा बदलाव नहीं आता है, तो इस यात्रा या ऐसी वार्ताओं से कोई ठोस परिणाम नहीं निकल सकेगा.
इसके कुछ कारण हैं-
1- यूक्रेन के बारे में कोई गारंटी देना यूरोपीय संघ एवं ब्रिटेन के बस की बात नहीं है. यह केवल अमेरिका कर सकता है और जो अमेरिका चाहेगा, यूरोपीय संघ एवं ब्रिटेन वही करेंगे. देखना यह है कि क्या मैकराँ और उर्सूला इस यात्रा में अमेरिका का कोई संदेश ले जा रहे हैं या नहीं.
2- चीन पिछले महीने ही एक 12-सूत्री प्रस्ताव दे चुका है. वह प्रस्ताव अमेरिका मान नहीं रहा है और उस प्रस्ताव से इतर शी कोई नयी बात कहेंगे, इसकी संभावना नहीं है.
3- कुछ दिन पहले जब शी ने मॉस्को की यात्रा की थी, उससे पहले ही अमेरिका की ओर से कहा गया कि युद्धविराम की सलाह नहीं मानी जायेगी. बिना युद्धविराम हुए बातचीत क्या ही होगी और आगे का कोई निर्णय भी नहीं होगा. बार-बार अमेरिका ने कहा है और यूरोपीय संघ ने दोहराया है कि वे रूस की पूर्ण पराजय चाहते हैं. ऐसी स्थिति में पुतिन को शी या कोई अन्य नेता क्या कहकर मना सकेगा!
4- कल रात को अमेरिका ने सीरिया में हवाई हमला किया है. ऑस्ट्रेलिया में चीन के विरुद्ध युद्धोन्माद फैलाया जा रहा है. चीन के वैश्विक हितों पर चोट पहुँचाने के प्रयास हो रहे हैं. इस पृष्ठभूमि में मैकराँ और उर्सूला के पास ऐसा क्या प्रस्ताव हो सकता है, जिस पर शी विश्वास कर सकें!
5- कुछ दिन पहले जब शी को पुतिन विदा कर रहे थे, तब शी ने उनसे जो कहा था, उसे फिर से देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा था- अभी ऐसे परिवर्तन हो रहे हैं, जो बीते सौ वर्ष में नहीं देखे गये. और, इस परिवर्तन के साझा संचालक हम लोग हैं.
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