कविता

मार्च 28, 2023 - 01:11
 0  25
कविता

क्या करूँगा मैं

- सज सँवर के- 

तुम्हारे खूबसूरती के

 समाजिक दायरों पे

खरा उतर के?

मैंने माना कि बाल नहीं ठीक हैं,

 ये जो

 उलझे मैले से कपड़े बदन पे मेरे

सब नहीं ठीक है।

पर ये आलस नहीं है-

 बस ये सजने सवरने-

ये अच्छा दिखने की बातें-

तुम्हारे चाहतों में

फिट हो जाने की बातें

मेरी चाहत नहीं है।

मेरी चाहत नहीं है।

और तुम झाँको जरा तो

 मेरे लिबासों के आगे-

 मेरे कमरे में देखो किताबें भरी हैं।

आपकी प्रतिक्रिया क्या है?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow