कविता

मार्च 29, 2023 - 00:02
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कविता

बाहर मैं कर दिया गया हूँ / निराला ????

बाहर मैं कर दिया गया हूँ। भीतर, पर, भर दिया गया हूँ।

ऊपर वह बर्फ़ गली है, नीचे यह नदी चली है;

सख़्त तने के ऊपर नर्म कली है;

 इसी तरह हर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

 आँखों पर पानी है लाज का,

 राग बजा अलग-अलग साज़ का;

भेद खुला सविता के किरण-ब्याज का;

 तभी सहज वर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

भीतर, बाहर; बाहर भीतर; देखा जब से,

 हुआ अनश्वर; माया का साधन यह सस्वर;

ऐसे ही घर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

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