कविता
बाहर मैं कर दिया गया हूँ / निराला ????
बाहर मैं कर दिया गया हूँ। भीतर, पर, भर दिया गया हूँ।
ऊपर वह बर्फ़ गली है, नीचे यह नदी चली है;
सख़्त तने के ऊपर नर्म कली है;
इसी तरह हर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।
आँखों पर पानी है लाज का,
राग बजा अलग-अलग साज़ का;
भेद खुला सविता के किरण-ब्याज का;
तभी सहज वर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।
भीतर, बाहर; बाहर भीतर; देखा जब से,
हुआ अनश्वर; माया का साधन यह सस्वर;
ऐसे ही घर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।
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