कविता
जीत सके मन भी न, वीर तुम कैसे हो ?
कहलाते हो धीर और इतने अस्थिर हो !
रामधारी सिंह दिनकर
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जीत सके मन भी न, वीर तुम कैसे हो ?
कहलाते हो धीर और इतने अस्थिर हो !
रामधारी सिंह दिनकर