क़ुर्र्तुल हैदर

जनवरी 21, 2024 - 00:19
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क़ुर्र्तुल हैदर

रात के ग्यारह बजे टैक्सी शहर की शांत सड़कों पर से गुजरती हुई एक पुराने ढंग के फाटक के सामने जाकर रुकी।

ड्राइवर ने दरवाजा खोलकर बड़े विश्वास के साथ मेरा सूटकेस उतार कर फुटपाथ पर रख दिया और पैसों के लिए हाथ फैलाये तो मुझे जरा अजीब- सा लगा।

 '' यही जगह है?” मैंने संदेह से पूछा। '' जी हाँ।? ' उसने इतमीनान से जवाब दिया। मैं नीचे उतरी। टैक्सी गली के अंधेरे में लुप्त हो गयी और मैं सुनसान फुटपाथ पर खड़ी रह गयी। मैंने फाटक खोलने की कोशिश की मगर वह अंदर से बंद था। तब मैंने दरवाजे में जो खिड़की लगी थी, उसे खटखटाया। कुछ देर बाद खिड़की खुली। मैंने चोरों की तरह अंदर झाँका। आंगन में कुछ अंधेरा था। जिसके एक कोने में दो लड़कियाँ रात के कपड़े पहने धीरे- धीरे बातें कर रही थीं। आंगन के सिरे पर एक छोटी- सी पुरानी इमारत थी। मुझे एक क्षण के लिए घसियारी मंडी लखनऊ का स्कूल याद आ गया जहाँ से मैंने बनारस यूनीवर्सिटी का मैट्रिक किया था। मैंने लौटकर गली की तरफ देखा वहाँ पूरी तरह शांति छाई थी। अनुमान लगाइये मैंने अपने आपसे कहा कि यह जगह अफीमचियों, स्मगलरों और गुलामों को बेचनेवालों का अड्‌डा निकले तो? मैं एक अजनबी देश के अजनबी शहर में रात के ग्यारह बजे एक गुमनाम भवन का दरवाजा खटखटा रही थी जो घसियारी मंडी के स्कूल से मिलता- जुलता था...!!!

(प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार और महान लेखिका क़ुर्रतुल ऐन हैदर के जन्मदिवस पर उनको नमन...!!!)

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