हिन्दी कविता

मार्च 5, 2023 - 00:15
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हिन्दी कविता

 दुपहरिया

झरने लगे नीम के पत्ते

बढ़ने लगी उदासी मन की,

उड़ने लगी बुझे खेतों से

झुर-झुर सरसों की रंगीनी,

धूसर धूप हुई मन पर

 ज्यों- सुधियों की चादर अनबीनी,

दिन के इस सुनसान पहर में रुक-सी गई प्रगति जीवन की ।

 साँस रोक कर खड़े हो गए

 लुटे-लुटे-से शीशम उन्मन,

 चिलबिल की नंगी बाँहों में

 भरने लगा एक खोयापन,

बड़ी हो गई कटु कानों को

‘चुर-मुर’ ध्वनि बाँसों के वन की ।

थक कर ठहर गई दुपहरिया,

रुक कर सहम गई चौबाई,

आँखों के इस वीराने में-

 और चमकने लगी रुखाई,

प्रान, आ गए दर्दीले दिन,

बीत गईं रातें ठिठुरन की ।

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