अपनी बात
आँखों के आगे जो कुछ दिखता, ऐसे लगता जैसे पानी में मिल गया हो। अनगिनत अनसोई रातें बिता चुकी आँखों को और क्या दिखता? साँसों की हालत ऐसी जैसे लगा दी हो बिना रुके रेत के ऊँचे टीलों के बीच हवा की उल्टी दिशा में दौड़।और माथे पे क्या, पसीना? जैसे रात की बारिश के निशान बोगनवेलिया की नई उगी पत्तियों पे छूट गए हों।
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जिनके लिए लगता था कि नहीं रहेंगे तो जैसे दुनिया से ऑक्सिजन गायब हो जाएगी, उनकी बातें, आदतें लगभग सबकुछ ही धुंधलाने लगता है। वैसे ही जैसे तीन साल पुरानी डायरी में लिखा रोजनामचा अब देखने पर ठीक से नहीं दिखलाई पड़ता।
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" ये जो फिर से 2 घँटे नहाने की आदत डाल ली है, इसको तुरंत सुधार लो।" क्यों सुधार लूँ? मन पर पड़ती है एक-एक बूँद, हर एक याद पर से हटानी होती है धूल, और सींचना होता है एक-एक एहसास कि मोहब्बत ज़िंदा रहे।
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