कविता

मार्च 28, 2023 - 12:24
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कविता

मैं इस घर से प्रेम करता हूँ

इस टूटे-फूटे और पुराने घर से

 जिसकी मिट्टी सुदूर मैदानों से

खोदकर लाई गई थी बैलगाड़ियों में

कभी पिता के ज़माने में

प्रेम करता हूँ मैं इस घर से

 जिसके आँगन में खड़े हैं गुलमोहर के

 सघन छायादार पेड़ जो अमलतास,

 नीम और गंगाइमली के पेड़ों से घिरा है

 जैसे हरियाली के समुद्र में ऊभ-चूभ कोई द्वीप

 यह घर उन सैकड़ों घरों की तरह है

एक दिन अचानक जिनके काम करने वाले

 शाम को घर नहीं लौटते

 फिर जहाँ दिनों तक चूल्हा नहीं जलता

 उन सैकड़ों घरों की तरह

जिनकी आवाज़ें खो गई हैं

इतनी शांति है इस घर में

जितनी क़ब्र पर चढ़े एक फूल के क़रीब होती है

जो टूटती है कभी-कभी किसी चिड़िया की आवाज़ से।

एकांत श्रीवास्तव

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