कविता

मार्च 27, 2023 - 01:23
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कविता

तब मुझे प्रतीत हुआ भयानक

 गहन मृतात्माएँ इसी नगर की

 हर रात जुलूस में चलतीं,

 परन्तु दिन में बैठती हैं

मिलकर करती हुई षड्यंत्र

विभिन्न दफ़्तरों-कार्यालयों,

केन्द्रों में, घरों में।

हाय, हाय! मैंने उन्हें देख लिया नंगा,

 (और कह भी दिया)

इसकी मुझे और सज़ा मिलेगी।

-मुक्तिबोध

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