ग़ज़ल
एक लंबी उड़ान हूँ जैसे
या कोई आसमान हूँ जैसे
हर कोई कब मुझे समझता है
सूफ़ियों की ज़बान हूँ जैसे
मैं अमीरों के इक मोहल्ले में
कोई कच्चा मकान हूँ जैसे
मुझसे रहते हैं दूर-दूर सभी
उम्र भर की थकान हूँ जैसे
बारिशें तेज़ हों तो लगता है
आग के दरमियान हूँ जैसे
लोग हँस-हँस के मुझको पढ़ते हैं
दर्द की दास्तान हूँ जैसे
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