ग़ज़ल 170
थक गए हो तो थकन छोड़ के जा सकते हो
तुम मुझे वाक़यतन छोड़ के जा सकते हो.
हम दरख़्तों को कहाँ आता है हिजरत करना
तुम परिन्दे हो , वतन छोड़ के जा सकते हो.
जाने वाले से , सवालात नहीं होते मियां
तुम यहाँ अपना बदन छोड़ के जा सकते हो.
तुमसे बातों में कुछ इस दर्जा मगन होता हूँ
मुझको बातों में मगन छोड़ के जा सकते हो.
अम्मार इक़बाल. .
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