ग़ज़ल
ये आलम शौक़ का देखा न जाए
वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाए
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
कि तेरा देखना देखा न जाए
हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए
Ahmed Faraaz
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
ये आलम शौक़ का देखा न जाए
वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाए
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
कि तेरा देखना देखा न जाए
हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए
Ahmed Faraaz