ग़ज़ल

मार्च 30, 2023 - 20:32
मार्च 30, 2023 - 20:38
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ग़ज़ल
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घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया

लेकिन तमाम शहर उजाले में आ गया

 ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग

आहट हुई तो चाँद दरीचे में आ गया

कुछ देर तक तो उस से मिरी गुफ़्तुगू रही

 फिर ये हुआ कि वो मिरे लहजे में आ गया

 होंटों पे ग़ीबतों की ख़राशें लिए हुए

 ये कौन आइनों के क़बीले में आ गया

आँधी भी बचपने की हदों से गुज़र गई 

मुझ को भी लुत्फ़ शम्अ जलाने में आ गया

अज़हर इनायती

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