ग़ज़ल

मार्च 30, 2023 - 20:37
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ग़ज़ल

बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे

सूरज निकल रहा था कि नींद आ गई मुझे

 रक्खी न ज़िंदगी ने मिरी मुफ़लिसी की

 शर्म चादर बना के राह में फैला गई मुझे

 मैं बिक गया था बाद में बे-सर्फ़ा जान कर

दुनिया मिरी दुकान पे लौटा गई मुझे

 क़ैसर उल जाफ़री

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