ग़ज़ल ( अपनी मर्ज़ी से- निदा फ़ाज़ली)

अप्रैल 3, 2023 - 13:57
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ग़ज़ल ( अपनी मर्ज़ी से- निदा फ़ाज़ली)

गज़ल (निदा फ़ाज़ली )

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं |

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है

 अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं |

 वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से

किसको मालूम, कहाँ के हैं, किधर के हम हैं |

जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं

कभी धरती के, कभी चाँद नगर के हम हैं |

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब

 सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं |

 गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम

हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं |

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