कुछ पुरानी जरूरी बातें
27 साल के रोगाजोव को अचानक से थकान महसूस हो रही थी ,साथ मे उल्टी जैसी फीलिंग आ रही थी .अगले कुछ घंटो में उन्हें अपने पेट के सीधे हिस्से में भंयकर दर्द हुआ. वे जान गये ये "एपेंडिसाइटिस" का दर्द है ,उन्होंने इस तरह की कंडीशन कई बार ऑपरेट की थी ,असल दुनिया मे ये एक रूटीन ऑपरेशन था पर वे अरटांटिका मे थे ,रशिया के छटवे एक्सपीडिशन का हिस्सा जिसमें 12 लोग थे जिन्हें पोलर वेस्ट लैंड का एक बेस तैयार करने के लिए भेजा गया था .वे फरवरी से वहां थे पर अप्रैल के उस महीने में वहां भारी बर्फबारी और मौसम के उन हालातों से वहां चीज़े मुश्किल हो गयी थी . रशिया से किसी जहाज के वहां तक आने में 65 दिन लग सकते थे और एक बार किसी जहाज के आने के बाद उसे वापस एक साल बाद ही ले जाया सकता था,एयर लिफ्ट करने का मौसम नही था. सर्जन होने के नाते वे जानते थे एपेंडिक्स फट सकता है और उससे फैले इंफेक्शन से उनकी जान जा सकती है ,उन्होंने तय किया के वे अपना ऑपरेशन खुद करेगे. उस स्टेशन पर मौजूद सीनियर को पर रशिया से परमिशन लेनी थी,वो कोल्ड वार का समय था और ऐसे में कोई भी दुर्घटना या एक्सीडेंट रशिया के उस एक्सपीडिशन की इमेज को खतरा था,पर इजाज़त मिल गयी . रोगाजोव ने दो लोग अपने असिस्टेंट के तौर पर चुने जो उन्हें इंस्ट्रूमेंट देगे ऑपरेशन के दौरान.उन्होंने मिरर की पोजीशन तय की ,ताकि अपने ऑपरेशन करते वक़्त वो देख सके वे क्या कर रहे है ! स्टेशन मास्टर को भी ऑपरेशन रूम में रहना था ये तय करना था के उनके असिस्टेंट ऑपरेशन के दौरान बेहोश ना हो जाये. यानी उन्हें खुद को एनसेथेसिया देना था,अपना पेट चीरना था,अपनी आंतो में से एपेंडिक्स अलग करके उसे काटना था और फिर वापस अपना पेट सिलना था,इस पूरी प्रक्रिया में खून बहने के कारण उन्हें बेहोशी आ सकती थी .अगली सुबह जब उन्होंने ऑपरेशन करना शुरू किया तो वे जान गए के मिरर की पोजीशन के बावजूद उनका "ऑपरेटिव विज़न" साफ नही है इसलिए उन्होंने तय किया के वे बिना ग्लोव्स के ही हाथ से ऑपरेशन करेगे ताकि छू कर पहचान सके के अपनी आंत के कौन से हिस्से को पकड़ रहे है . पर उससे इंफेक्शन के खतरे बढ़ जाते थे. ऑपरेशन के आखिरी हिस्से तक पहुंचते पहुंचते वे थकने लगे थे लगभग फैंट ।इसलिये अपना पेट सिलते हुए वे कुछ सेकंड रुकने लगे थे। उन्होंने अपने असिस्टेंट को याद दिलाया के उन्हें इंस्ट्रूमेंट और ओ टी का वो हिस्सा कैसे स्ट्रेलाईज़ करना है.डेढ़ घंटे के उस समय मे उन्होंने वो काम कर दिया था जो उससे पहले कभी नही हुआ था.और जिसकीं ट्रेनिंग किसी मेडिकल इंसिट्यूट में आज तक नही दी जाती .
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