मन का मौन
कोई कंघी न मिली जिस से सुलझ पाती वो
ज़िंदगी उलझी रही ब्रम्हा के दर्शन की तरह
( नीरज)
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
कोई कंघी न मिली जिस से सुलझ पाती वो
ज़िंदगी उलझी रही ब्रम्हा के दर्शन की तरह
( नीरज)