उपराष्ट्रपति धनखड़ - 'बहुत पीड़ा होती है जब अपनों में से कोई विदेशी धरती पर भारत की छवि धूमिल करता है'
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि विदेशी धरती पर जाकर भारत की छवि धूमिल करने की कोशिशों पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने राहुल गांधी का नाम लिए बिना लंदन में दिए गए उनके बयान की आलोचना की।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लंदन में दिए बयान को लेकर निशाना साधा है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि विदेशी भूमि पर जाकर भारत की तस्वीर को धूमिल करने के प्रयास पर अंकुश लगना चाहिए। धनखड़ प्रसिद्ध समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी करने के बाद यहां एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कुछ भारतीय विदेशी संस्थानों में भारत के विकास को रोकने का प्रयास करते हैं। उन्होंने आजादी के बारे में स्वामी दयानंद के विचार और विदेशी शासन के प्रति उनके प्रतिरोध का हवाला दिया। उपराष्ट्रपति ने भारत और इसकी लोकतांत्रिक संस्थाओं की छवि को धूमिल करने के लिए विदेशों में की गई कथित टिप्पणियों को लेकर नाराजगी जताई।
धनखड़ ने कहा, ‘कुछ पीड़ा होती है, जब अपनों में से कुछ लोग विदेशी भूमि पर जाकर उभरते हुए भारत की तस्वीर को धूमिल करने का प्रयास करते हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए... सच्चे मन से भारत और भारतीयता में विश्वास करने वाला व्यक्ति भारत के सुधार की सोचेगा, सुधार में सहयोग करने की सोचेगा…। हो सकता है कि कमियां हों, उन कमियों को दूर करने की सोचेगा पर विदेश में जाकर नुक्ताचीनी करना… विदेश में जाकर संस्थाओं के ऊपर घोर टिप्पणी करना हर मापदंड पर अमर्यादित है।’
उन्होंने कहा कि एक समय था जब संस्थानों के नाम कुछ चुनिंदा लोगों के नाम पर रखे जाते थे और यह आभास होता था कि देश में महान हस्तियों की कमी है। उन्होंने कहा, ‘प्राचीन काल से ही भारत ऋषि-मुनियों का देश रहा है। भगवान के यहां कई अवतार हुए... राम काल्पनिक नही हैं, राम हमारी सभ्यता का हिस्सा हैं।’
धनखड़ ने कहा कि उन संस्थाओं के अंदर कई देशों के विद्यार्थी और अध्यापक हैं पर यह अनुचित कार्य हमारे ही कुछ लोग क्यों करते हैं, किसी और देश के लोग क्यों नहीं करते हैं…। यह सोच और चिंतन का विषय है।
उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद ने अपनी रचनाओं के जरिए भारतीय जनमानस को मानसिक दासत्व से मुक्त कराने की पूर्ण चेष्टा की और इस अमृत कालखंड में स्वामी जी की आत्मा प्रसन्न होगी कि विदेशी शासकों का यह दासत्व खत्म हो चुका है।
धनखड़ ने संस्कृत को बढ़ावा दिए जाने पर जोर दिया और कहा कि दुनिया में संस्कृत का कोई मुकाबला ही नहीं है… और एक तरीके से यह अनेक भाषाओं की जननी है और हम जननी को मिटने नहीं दे सकते।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?