कविता

फ़रवरी 14, 2023 - 13:06
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कविता

खूबसूरत घरों में बहुत कम रहते हैं

 खूबसूरत लोग

खूबसूरत घरों के दरवाजे कभी नहीं थपथपातीं अँगुलियाँ

 वे फाँक-भर खुलते हैं घंटी की आवाज़ पर

 हो जाते हैं बन्द खुद-ब-खुद

 बहुत कम हँसते हैं खूबसूरत घर

वे जानते हैं- ठहाके लगाने वाले लोग होते हैं

जंगली छोटी-छोटी खुशियों का मनाते हैं उत्सव

खूबसूरत घरों में नहीं रहते-

पीतल के लोटे,

काँसे के कटोरे

मिट्टी के घड़े,

 खील-बताशे

वहाँ नहीं रहती गंगाजल की बोतल

 गीता, रामायण

 राधा-कृष्ण-शिव के कैलेण्डर खूबसूरत घरों में नहीं होते

झरोखे वहाँ से नहीं आती कोदे की गन्ध

 वहाँ नहीं पकता गुड़ का हलवा मक्की की रोटी

खूबसूरत घर नहीं पकाते छाछ में चावल

खूबसूरत घरों में कोई नहीं करता किसी का इन्तज़ार

खूबसूरत घरों में उगे रहते हैं तमाम तरह के विदेशी फूल

 खूबसूरत घरों में नहीं उगता तुलसी का पौधा

खूबसूरत घरों के लोग करते हैं

 मनुष्य से अधिक अपने सामान से प्यार

तभी तो होते हैं खूबसूरत घरों के कई-कई पहरेदार

खूबसूरत घर खूबसूरत लगते हुए भी नहीं होते खूबसूरत

खूबसूरत घरों में नहीं होता पुआल का बिस्तर

वहाँ नहीं सुनते बच्चे लालटेन की रोशनी में दादी की कहानियाँ

वे नहीं जानते गुदड़ी के सपने

सुना है- "नींद न आने की बीमारी से बीमार होते हैं

 तमाम खूबसूरत घर।"

 कुमार_कृष्ण ❤

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