शेर
                                सफ़र की इंतहा तक एक ताज़ा आस बाक़ी है
कि मैं ये मोड़ काटूँ उस तरफ़ से तू निकल आये
-पीरज़ादा क़ासिम साहब
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                                सफ़र की इंतहा तक एक ताज़ा आस बाक़ी है
कि मैं ये मोड़ काटूँ उस तरफ़ से तू निकल आये
-पीरज़ादा क़ासिम साहब