शेर
यूं न मुरझा कि मुझे खुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम में तेरे साथ खिला हूं मैं भी
मजहर इमाम
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यूं न मुरझा कि मुझे खुद पे भरोसा न रहे
पिछले मौसम में तेरे साथ खिला हूं मैं भी
मजहर इमाम