बुरे फंसे जावेद अख्तर, RSS की तालिबान से तुलना पर,अदालत ने माना आरएसएस की मानहानि हुई
याचिकर्ता वकील ने आरोप लगाया था कि जावेद अख्तर ने आरएसएस में शामिल होने की इच्छा रखने वाले युवाओं को गुमराह किया है। फ़िलहाल अदालत ने यह माना है कि जावेद अख्तर के बयान से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मानहानि हुई है।
जाने माने लेखक और गीतकार जावेद अख्तर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना तालिबान से करके बुरी तरह से फंस गए हैं। साल 2021 में उनके द्वारा दिया गया यह बयान अब उनके लिए गले की हड्डी साबित हो रहा है। इस मामले में अदालत ने उन्हें नोटिस भी भेजा था। अदालत ने कहा कि जावेद अख्तर अपनी लेखनी के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं। उनके शब्दों की अहमियत है ऐसे में उन्हें उनके द्वारा आरएसएस को लेकर कहे गए शब्द से आरएसएस (संघ) की मानहानि हुई है। वहीं इस मामले में याचिकाकर्ता एडवोकेट संतोष दुबे ने कहा कि तालिबान की बर्बरता पर बात करते हुए उन्हें जबरदस्ती आरएसएस को बीच में लाने की कोई जरूरत नहीं थी।
दरअसल साल 2021 के दौरान एक इंटरव्यू में जावेद अख्तर ने आरएसएस को लेकर टिप्पणी की थी। जिसके बाद उनके खिलाफ मानहानि का केस दर्ज हुआ था। जावेद अख्तर पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने आरएसएस की तुलना आतंकी संगठन तालिबान से की थी। जिसके बाद उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करके कहा गया था कि वह राजनीतिक लाभ के लिए जानबूझकर नागपुर मुख्यालय वाले संगठन का नाम घसीट रहे हैं। वह सुनियोजित तरह से आरएसएस को बदनाम कर रहे हैं।
जब यह मामला मुंबई के मुलुंड कोर्ट में आरएसएस समर्थक एक वकील संतोष दुबे द्वारा दायर किया गया था। तब जावेद अख्तर ने भी अपना पक्ष रहा था। पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए उन्होंने कहा था कि सिर्फ अपने विचार रखने से व्यक्ति को किसी जुर्म का अपराधी नहीं माना जा सकता है। इस मामले में जावेद के वकील ने कहा कि याची जुहू का रहने वाला है और जिस कोर्ट ने अख्तर को समन जारी किया है वह मुलुंड में है, और जुहू उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। उनके वकील ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने किसी बात पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और यह विचार मानहानि का अपराध नहीं बनता है।
इसलिए याचिकाकर्ता को शिकायत दर्ज कराने का कोई अधिकार नहीं है। जावेद अख्तर के वकील ने कहा कि आरएसएस के समर्थक वकील ने अभी तक ऐसा कोई लेटर नहीं दिखाया है जिससे यह साबित होता हो कि संघ ने उनको केस फाइल करने का अधिकार दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि महज इस बात पर उन पर कार्रवाई कर देना कि जिस व्यक्ति ने याचिका दायर की है वह संघ का समर्थक है, इतना भर पर्याप्त नहीं है।
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