दुष्यंत कुमार
“ उर्दू और हिंदी अपने- अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के पास आती है तो उनमें फ़र्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यह रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में कही गई हैं, जिसे मैं बोलता हूँ ।”
—दुष्यन्त कुमार
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